आज आसमा का खयाल आया
तो सोचा... ...
एक छाता सा दिखता है ये
निश्छल सा रहता है ये
हम सबको छत देता है ये
निश्छल सा रहता है ये... ...
दूर गगन मे दूर किरन मे
आभा सा दिखता है ये
बेघर को छत दे के भी
निश्छल सा रहता है ये... ...
देखो देखो दूर गगन मे
आसमा का खेल निराला
हम सबको दे छाव पेड सा
निश्चल सा रहता है ये... ..
तो सोचा... ...
एक छाता सा दिखता है ये
निश्छल सा रहता है ये
हम सबको छत देता है ये
निश्छल सा रहता है ये... ...
दूर गगन मे दूर किरन मे
आभा सा दिखता है ये
बेघर को छत दे के भी
निश्छल सा रहता है ये... ...
देखो देखो दूर गगन मे
आसमा का खेल निराला
हम सबको दे छाव पेड सा
निश्चल सा रहता है ये... ..
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