19 January 2011



सोचता हूँ रोज आखिर जिन्दगी से कभी मुलाकात करूं
रोते बच्चों से बात करूं रोती ममता से बात करूं ...

जब सारा शहर सो जाता है पत्ते तक सो जाते हैं
ठंठ की उन रातों में जगते नैनो से बात करूं
उम्र तमाम गुजरी जिनकी गरीबी में
उन गरीबों से कभी बात करूं
सोचता हूँ रोज आखिर जिन्दगी से कभी मुलाकात करूं ...

हम भारत के रहने वाले, मिट्टी में पलने वाले
रोज उगते सूरज को नमन करने वाले
कभी सोचें फुर्सत में क्या हालत है
सोच सोच के बात करूं
सोचता हूँ रोज आखिर जिन्दगी से कभी मुलाकात करूं ...

सोचता हूँ रोज आखिर जिन्दगी से कभी मुलाकात करूं
रोते बच्चों से बात करूं रोती ममता से बात करूं .....

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