आज बात खुद की तो, जिन्दगी का रंग नुमाया हो गया |
दौलत न थी मेरे पास तो, अपना ही पराया हो गया ||
कल रात आइना जो देखा तो, एक धुंधली तस्वीर सी दिखाई दी |
आज महफ़िल में गया तो, हकीकत सी दिखाई दी ||
क्या पता मुझे जो, शर्गोशियाँ होती थी मेरे जेहन में ,
जमाने को मेरे खूने-अश्क में भी ,अय्याशियाँ दिखाई दी||
हकीकत कुछ और थी, फसाना कुछ और था ,
रिश्तों की जंग में ,लहू का रंग कुछ और था |
जब बात खुद के लहू की ,हुयी तो पता चला ,
नकाब कुछ और था ,लहू कुछ और था ....||||
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