दूर समन्दर, घर अम्बर का
दूर दूर तक नीला -पीला
कल देखा तो सोचा मैंने
कहाँ कहाँ रहता इन्सान
पहाड़ों की ऊँची चडान
दूर दूर तक सुनसान
कल देखा तो सोचा मैंने
क्यूँ यहाँ रहता इन्सान
जल का अविरल स्वछंद बहाव
जीवों का था पूरा खान
कल देखा तो सोचा मैंने
काश ! यहाँ होता इन्सान
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